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इन बेटियों को नहीं मिलेगा पिता की संपत्ति में हिस्सा, हाईकोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला Delhi High Court

By Meera Sharma

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Delhi High Court

Delhi High Court: संपत्ति से जुड़े मामलों में अक्सर कानूनी जटिलताएं देखने को मिलती हैं, विशेषकर जब बात पैतृक संपत्ति में अधिकार की हो। हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक ऐसा ही महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जिसमें स्पष्ट किया गया है कि तलाकशुदा बेटियां अपने मृत पिता की संपत्ति में हिस्सा पाने की हकदार नहीं हैं। इस फैसले ने परिवारिक संपत्ति के अधिकारों पर नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है, जो अविवाहित और विधवा बेटियों के अधिकारों से अलग है। आइए इस फैसले की विस्तृत जानकारी और इसके प्रभावों को समझें।

अविवाहित और विधवा बेटियों के अधिकार

दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने ताजा फैसले में स्पष्ट किया है कि अविवाहित या विधवा बेटियां अपने मृत पिता की संपत्ति में हकदार होती हैं। न्यायालय ने माना कि ऐसी बेटियों के पास जीवन यापन के लिए परिवार से गुजारा भत्ता और पैतृक संपत्ति में हिस्सा लेने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं होता है। उनकी आर्थिक सुरक्षा और भरण-पोषण का दायित्व परिवार पर होता है, और इसी आधार पर उन्हें पैतृक संपत्ति में अधिकार दिया गया है। यह फैसला उन बेटियों के लिए महत्वपूर्ण है जो अविवाहित हैं या जिनके पति की मृत्यु हो चुकी है।

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तलाकशुदा बेटियों के अधिकारों पर कोर्ट का फैसला

इसके विपरीत, हाईकोर्ट ने कहा है कि तलाकशुदा बेटियां अपने मृत पिता की संपत्ति में हकदार नहीं होतीं। न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि तलाकशुदा बेटियां अपने भरण-पोषण के लिए पिता पर निर्भर नहीं होतीं, बल्कि वे अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता पाने की हकदार होती हैं। अदालत ने स्पष्ट किया कि तलाकशुदा महिलाएं पूरे अधिकार के साथ अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता मांग सकती हैं और इसके लिए वे कानून का सहारा ले सकती हैं।

हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम की व्याख्या

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दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले में हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम की धारा 21 का विश्लेषण किया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि यह धारा उन आश्रितों को भरण-पोषण का दावा करने का अधिकार देती है जिनके पास कोई अन्य सहारा नहीं होता। हाईकोर्ट ने कहा कि इस अधिनियम में भरण-पोषण का अधिकार रिश्तेदारों की नौ श्रेणियों के लिए उपलब्ध कराया गया है, लेकिन इसमें तलाकशुदा बेटी का उल्लेख नहीं है। इस व्याख्या के आधार पर, अदालत ने तलाकशुदा बेटियों को पैतृक संपत्ति में अधिकार देने से इनकार कर दिया।

मामले की पृष्ठभूमि

यह फैसला एक तलाकशुदा महिला की अपील पर आया, जिसने पारिवारिक अदालत के फैसले को चुनौती दी थी। मामले के अनुसार, याचिकाकर्ता महिला के पिता की 1999 में मृत्यु हो गई थी। तलाकशुदा महिला के परिवार में उसके अलावा एक भाई और दो बहनें थीं। महिला ने कोर्ट में दलील दी थी कि कानूनी वारिस होने के बावजूद उसे अपने मृत पिता की संपत्ति में हिस्सा नहीं दिया गया था। महिला का दावा था कि उसकी मां और भाई ने उसे हर महीने 45,000 रुपये देने का वादा इस शर्त पर किया था कि वह संपत्ति में अपना हिस्सा नहीं मांगेगी।

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परिवार से भरण-पोषण की मांग

महिला का यह भी कहना था कि उसकी मां और भाई ने नवंबर 2014 तक नियमित रूप से भरण-पोषण का खर्च दिया, लेकिन बाद में यह राशि देना बंद कर दिया। महिला ने बताया कि उसके पति ने सितंबर 2001 में एकतरफा तलाक दे दिया था और उसके बाद से पति के बारे में कुछ पता नहीं चला, जिसके कारण वह अपने पूर्व पति से कोई गुजारा भत्ता नहीं ले पाई। इन्हीं परिस्थितियों में महिला ने अपनी मां और भाई से भरण-पोषण की मांग की थी, जिसे पारिवारिक अदालत ने खारिज कर दिया था।

पारिवारिक अदालत का फैसला और हाईकोर्ट का समर्थन

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दिल्ली की पारिवारिक अदालत ने महिला की याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि तलाकशुदा बेटी अपने भरण-पोषण के लिए परिवार पर निर्भर नहीं हो सकती। इस फैसले को महिला ने दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने पारिवारिक अदालत के फैसले का समर्थन करते हुए कहा कि हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम की धारा 21 को परिस्थितियों के आधार पर बदला नहीं जा सकता। अदालत ने महिला को अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता प्राप्त करने के लिए कानूनी विकल्पों का सहारा लेने की सलाह दी।

फैसले का तर्क और आधार

दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले में तर्क दिया कि तलाकशुदा बेटियां अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता पाने की हकदार हैं, और इसी कारण उन्हें पैतृक संपत्ति में हिस्सा देने की आवश्यकता नहीं है। अदालत ने माना कि तलाकशुदा महिलाओं के पास अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता प्राप्त करने का कानूनी अधिकार है, जबकि अविवाहित या विधवा बेटियों के पास ऐसा कोई विकल्प नहीं होता। यही कारण है कि कानून अविवाहित और विधवा बेटियों को पैतृक संपत्ति में अधिकार देता है, ताकि उनकी आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।

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फैसले के संभावित प्रभाव और विवाद

इस फैसले के दूरगामी प्रभाव हो सकते हैं, खासकर उन तलाकशुदा महिलाओं के लिए जिनके पूर्व पति का पता नहीं है या जो अन्य कारणों से अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता प्राप्त नहीं कर पा रही हैं। यह फैसला आने वाले समय में एक नजीर बन सकता है, लेकिन इस पर विवाद भी हो सकता है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला तलाकशुदा महिलाओं के साथ अन्याय कर सकता है, विशेषकर उन मामलों में जहां वे अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता प्राप्त करने में असमर्थ हैं।

विशेषज्ञों की राय और भविष्य का दृष्टिकोण

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कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि इस फैसले पर पुनर्विचार की आवश्यकता हो सकती है। वे तर्क देते हैं कि तलाकशुदा बेटियों को भी पैतृक संपत्ति में अधिकार मिलना चाहिए, खासकर उन मामलों में जहां वे अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता प्राप्त करने में असमर्थ हैं। कुछ विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि महिलाओं के अधिकारों की दृष्टि से यह फैसला पीछे की ओर कदम हो सकता है। हालांकि, अभी यह देखना बाकी है कि क्या इस फैसले पर उच्चतम न्यायालय में अपील की जाएगी और उच्चतम न्यायालय का इस मुद्दे पर क्या रुख होगा।

दिल्ली हाईकोर्ट का यह फैसला संपत्ति अधिकारों के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण निर्णय है। इसने स्पष्ट किया है कि अविवाहित और विधवा बेटियां पैतृक संपत्ति में हकदार हैं, जबकि तलाकशुदा बेटियां नहीं। यह फैसला हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम की धारा 21 की व्याख्या पर आधारित है, जिसमें तलाकशुदा बेटियों का उल्लेख नहीं है। हालांकि, इस फैसले पर विवाद हो सकता है, खासकर उन मामलों में जहां तलाकशुदा महिलाएं अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता प्राप्त करने में असमर्थ हैं। आने वाले समय में इस मुद्दे पर और अधिक स्पष्टता आ सकती है, विशेषकर यदि इस पर उच्चतम न्यायालय में अपील की जाती है।

Disclaimer

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यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है और इसमें दी गई जानकारी किसी भी प्रकार की कानूनी सलाह नहीं है। संपत्ति से संबंधित मामलों में हमेशा योग्य कानूनी सलाहकार से परामर्श करना चाहिए। कानून और न्यायिक फैसले समय के साथ बदल सकते हैं, इसलिए हमेशा नवीनतम जानकारी प्राप्त करें। यह लेख दिल्ली हाईकोर्ट के एक विशेष फैसले पर आधारित है और अन्य राज्यों या परिस्थितियों में नियम और व्याख्याएं भिन्न हो सकती हैं। लेखक या प्रकाशक इस लेख में दी गई जानकारी के आधार पर किए गए किसी भी निर्णय के लिए ज़िम्मेदार नहीं होंगे।

Meera Sharma

Meera Sharma is a talented writer and editor at a top news portal, shining with her concise takes on government schemes, news, tech, and automobiles. Her engaging style and sharp insights make her a beloved voice in journalism.

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