bank cheque bounce: आज के समय में चेक से भुगतान करना एक आम बात है। व्यापार, व्यक्तिगत लेनदेन या अन्य वित्तीय मामलों में चेक का उपयोग बड़े पैमाने पर किया जाता है। हालांकि, कई बार चेक बाउंस होने की स्थिति भी उत्पन्न हो जाती है। चेक बाउंस तब होता है जब बैंक द्वारा किसी चेक का भुगतान नहीं किया जाता, और इसके कई कारण हो सकते हैं। सबसे आम कारण है खाते में पर्याप्त धनराशि न होना, लेकिन हस्ताक्षर मेल न खाना या चेक की वैधता समाप्त होना भी इसके कारण हो सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश
भारत में चेक बाउंस को कानूनी अपराध माना जाता है और इसके लिए सजा का प्रावधान है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि चेक बाउंस होते ही तुरंत जेल की सजा नहीं दी जाती। इस संबंध में कई महत्वपूर्ण प्रावधान और प्रक्रियाएं हैं जिनका पालन किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार, चेक बाउंस के मामले में आरोपी को अपना पक्ष रखने का पूरा अवसर मिलता है, और कई चरणों में कानूनी प्रक्रिया पूरी होती है।
चेक जारी करते समय सावधानियां
जब आप किसी को चेक दे रहे हों, तो यह सुनिश्चित करें कि आपके बैंक खाते में पर्याप्त राशि मौजूद है। चेक पर सही तारीख और राशि लिखें, और अपना हस्ताक्षर भी सही तरीके से करें। ये बुनियादी सावधानियां आपको चेक बाउंस की समस्या से बचा सकती हैं। इसके अलावा, अपने बैंक स्टेटमेंट की नियमित रूप से जांच करें ताकि आपको अपने खाते में उपलब्ध राशि का सही अंदाजा रहे। आजकल मोबाइल बैंकिंग के माध्यम से यह जानकारी आसानी से प्राप्त की जा सकती है।
चेक बाउंस होने पर प्रथम कानूनी कदम
चेक बाउंस होने पर लेनदार को सबसे पहले चेक जारी करने वाले को कानूनी नोटिस भेजने की आवश्यकता होती है। यह नोटिस चेक बाउंस होने के 30 दिनों के भीतर भेजा जाना चाहिए। इस नोटिस में चेक की राशि का भुगतान करने के लिए 15 दिनों का समय दिया जाता है। अगर चेक जारी करने वाला व्यक्ति इस अवधि में भुगतान कर देता है, तो मामला यहीं समाप्त हो जाता है और कोई कानूनी कार्रवाई नहीं होती। यह प्रथम अवसर है जिसमें चेक जारी करने वाला व्यक्ति बिना किसी कानूनी समस्या के मामले को सुलझा सकता है।
अदालत में शिकायत दर्ज करना
अगर नोटिस के 15 दिनों के भीतर भुगतान नहीं किया जाता, तो नोटिस भेजने के 30 दिनों के बाद लेकिन 45 दिनों के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत दर्ज की जा सकती है। यह निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट 1881 की धारा 138 के तहत दर्ज की जाती है। इस शिकायत में, चेक की प्रति, बाउंस होने का नोटिस और बैंक से मिला बाउंस मेमो संलग्न किया जाता है। अदालत शिकायत की जांच करने के बाद आरोपी को समन जारी करती है। यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि यह शिकायत सीधे पुलिस स्टेशन में नहीं बल्कि अदालत में दर्ज की जाती है।
चेक बाउंस पर कानूनी सजा का प्रावधान
निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट 1881 की धारा 138 के अनुसार, चेक बाउंस के मामले में दोषी व्यक्ति को दो साल तक की कैद या चेक राशि से दोगुनी राशि का जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है। हालांकि, अधिकतर मामलों में सजा छह महीने से एक साल तक की होती है। यह सजा कोर्ट के निर्णय पर निर्भर करती है और मामले की गंभीरता के आधार पर तय की जाती है। मामले की परिस्थितियों और आरोपी के आचरण को देखते हुए न्यायाधीश उचित सजा का निर्धारण करते हैं।
अंतरिम मुआवजे का प्रावधान
2019 में निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट में एक महत्वपूर्ण संशोधन किया गया, जिसके तहत अंतरिम मुआवजे का प्रावधान जोड़ा गया। इसके अनुसार, चेक बाउंस का आरोपी अदालत में अपनी पहली पेशी पर शिकायतकर्ता को चेक की राशि का 20 प्रतिशत हिस्सा चुकाने का विकल्प चुन सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रावधान में बाद में संशोधन किया और यह निर्देश दिया कि यह अंतरिम मुआवजा पहली सुनवाई के बजाय अपील के समय दिया जा सकता है। अगर बाद में आरोपी की अपील स्वीकार कर ली जाती है, तो उसे यह राशि वापस मिल जाती है।
जमानत और अपील का अधिकार
चेक बाउंस एक जमानती अपराध है, जिसका अर्थ है कि आरोपी को गिरफ्तारी से बचने के लिए जमानत मिल सकती है। मामले के अंतिम निर्णय से पहले आरोपी को जेल नहीं भेजा जाता। यदि कोई व्यक्ति चेक बाउंस के मामले में दोषी पाया जाता है और उसे सजा सुनाई जाती है, तो वह भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 374(3) के तहत 30 दिनों के भीतर सेशन कोर्ट में अपील कर सकता है। अपील के दौरान, दोषी व्यक्ति धारा 389(3) के तहत सजा के निलंबन और जमानत की मांग कर सकता है। इसका निर्णय कोर्ट की विवेकाधीन शक्ति पर निर्भर करता है।
चेक बाउंस के आम कारण
चेक बाउंस के कई कारण हो सकते हैं। सबसे आम कारण खाते में पर्याप्त धनराशि न होना है। इसके अलावा, हस्ताक्षर मेल न खाना, चेक पर कोई संशोधन या काट-छांट होना, चेक की वैधता समाप्त होना, चेक पर तारीख न होना या गलत तारीख होना, और खाता बंद या फ्रीज होना भी इसके कारण हो सकते हैं। चेक जारी करते समय इन बातों का ध्यान रखना चाहिए ताकि चेक बाउंस की स्थिति से बचा जा सके। कई बार अनजाने में की गई गलतियों के कारण भी चेक बाउंस हो जाता है।
चेक बाउंस से बचने के उपाय
चेक बाउंस से बचने के लिए कुछ सावधानियां बरतना आवश्यक है। सबसे पहले, चेक जारी करने से पहले अपने खाते में पर्याप्त राशि सुनिश्चित करें। अगर आप किसी भविष्य की तारीख के लिए चेक दे रहे हैं, तो उस तारीख तक अपने खाते में पर्याप्त राशि होनी चाहिए। चेक पर सभी विवरण सही से भरें और किसी भी प्रकार की काट-छांट से बचें। अगर कोई संशोधन करना है, तो उसके पास अपने हस्ताक्षर करें। अपने खाते की नियमित जांच करें और बैंक से संबंधित कोई भी जानकारी या नियम बदलने पर उससे अवगत रहें।
चेक बाउंस विवादों का निपटारा
कई मामलों में, चेक बाउंस विवादों का निपटारा आपसी समझौते से भी किया जा सकता है। दोनों पक्ष एक-दूसरे से बातचीत कर सकते हैं और भुगतान के लिए एक नई योजना बना सकते हैं। इससे समय, पैसा और मानसिक तनाव से बचा जा सकता है। अगर समझौता नहीं हो पाता, तो लोक अदालत या मध्यस्थता का सहारा लिया जा सकता है। इन विकल्पों में मामले का निपटारा अदालती प्रक्रिया से जल्दी हो सकता है और दोनों पक्षों को संतुष्टि मिल सकती है। हालांकि, यह विकल्प दोनों पक्षों की सहमति पर निर्भर करता है।
डिस्क्लेमर
यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है और इसे कानूनी सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए। चेक बाउंस से जुड़े मामले जटिल हो सकते हैं और प्रत्येक मामले की अपनी विशिष्ट परिस्थितियां होती हैं। किसी भी कानूनी समस्या या विवाद के लिए, योग्य कानूनी सलाहकार से परामर्श करना अनिवार्य है। कानून और उसकी व्याख्या समय के साथ बदल सकती है, इसलिए नवीनतम कानूनी जानकारी के लिए आधिकारिक स्रोतों का संदर्भ लें। लेखक या प्रकाशक किसी भी नुकसान या क्षति के लिए उत्तरदायी नहीं होंगे जो इस लेख में दी गई जानकारी पर निर्भरता के परिणामस्वरूप हो सकती है।