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तलाक होने पर पत्नी को भी देना होता है पति को पैसा, जान लें कानून marriage act guidelines

By Meera Sharma

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marriage act guidelines

marriage act guidelines: पति और पत्नी का रिश्ता समाज में सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण रिश्तों में से एक माना जाता है। यह एक ऐसा बंधन है जो दो व्यक्तियों को जीवन भर के लिए एक साथ रहने का वचन देता है। लेकिन वर्तमान समय में तलाक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। कभी-कभी परिस्थितियां ऐसी हो जाती हैं कि पति-पत्नी अपने रिश्ते को आगे नहीं बढ़ा पाते और तलाक लेने का फैसला करते हैं। ऐसे में दोनों पक्षों को कानूनी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है, जिसमें आर्थिक पहलू भी शामिल होते हैं।

तलाक के बाद भरण-पोषण का महत्व

तलाक के बाद भरण-पोषण या एलिमनी एक महत्वपूर्ण मुद्दा होता है। आमतौर पर लोगों की यह धारणा है कि तलाक के बाद सिर्फ पति को ही पत्नी को भरण-पोषण या एलिमनी देना पड़ता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुछ परिस्थितियों में पत्नी को भी पति को भरण-पोषण देना पड़ सकता है? हाँ, भारतीय कानून में ऐसे प्रावधान हैं जो दोनों पक्षों के अधिकारों को समान रूप से मान्यता देते हैं। इससे जुड़े कानूनों और नियमों की जानकारी होना जरूरी है।

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मुंबई का अनोखा मामला

हाल ही में मुंबई में एक ऐसा मामला सामने आया, जिसने कई लोगों को चौंका दिया। एक ऐसे दंपति ने तलाक लिया, जिनकी शादी को 25 साल से अधिक समय हो चुका था। इस मामले में विशेष बात यह थी कि पत्नी ने अपने पति को करीब 10 करोड़ रुपये की एलिमनी दी। यह रकम एक सामान्य एलिमनी से कहीं अधिक थी और इसने कई लोगों का ध्यान इस ओर खींचा कि तलाक में सिर्फ पति ही नहीं, पत्नी भी पति को भरण-पोषण दे सकती है।

तलाक से जुड़े भारतीय कानून

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भारत में विभिन्न धर्मों के लिए अलग-अलग विवाह कानून हैं। हिंदुओं के लिए हिंदू विवाह अधिनियम, मुस्लिमों के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ, ईसाइयों के लिए क्रिश्चियन मैरिज एक्ट और अंतर-धार्मिक विवाह के लिए स्पेशल मैरिज एक्ट लागू होता है। इन सभी कानूनों में तलाक और भरण-पोषण से संबंधित अलग-अलग प्रावधान हैं। हिंदू विवाह अधिनियम के तहत, दोनों पक्षों को भरण-पोषण मांगने का अधिकार है, जबकि स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत यह अधिकार सिर्फ पत्नी को प्राप्त है।

हिंदू विवाह अधिनियम की धारा-9

हिंदू विवाह अधिनियम की धारा-9 ‘रेस्टीट्यूशन ऑफ कॉन्जुगल राइट्स’ (RCR) यानी दांपत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना से संबंधित है। इस धारा के अनुसार, यदि पति या पत्नी बिना किसी ठोस कारण के एक-दूसरे से अलग रह रहे हैं, तो कोई भी एक पक्ष न्यायालय में याचिका दायर करके दूसरे पक्ष को एक साथ रहने के लिए कह सकता है। यदि न्यायालय के आदेश का पालन नहीं किया जाता है, तो इसके आधार पर तलाक की मांग की जा सकती है। यह प्रावधान दोनों पक्षों पर समान रूप से लागू होता है।

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हिंदू विवाह अधिनियम की धारा-25

हिंदू विवाह अधिनियम की धारा-25 भरण-पोषण और एलिमनी से संबंधित है। इस धारा के अनुसार, न्यायालय तलाक देते समय या उसके बाद किसी भी समय पति या पत्नी को अस्थायी या स्थायी भरण-पोषण का आदेश दे सकता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि यह अधिकार दोनों पक्षों को समान रूप से प्राप्त है। यानी, परिस्थितियों के अनुसार पत्नी को भी पति को भरण-पोषण देना पड़ सकता है। न्यायालय भरण-पोषण की राशि निर्धारित करते समय दोनों पक्षों की आय, संपत्ति और अन्य परिस्थितियों को ध्यान में रखता है।

पति कब मांग सकता है पत्नी से एलिमनी

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आमतौर पर यह माना जाता है कि पत्नी आर्थिक रूप से पति पर निर्भर होती है, इसलिए तलाक के बाद पति को पत्नी को भरण-पोषण देना पड़ता है। लेकिन वर्तमान समय में स्थिति बदल रही है। अब कई महिलाएं आर्थिक रूप से स्वतंत्र हैं और अच्छी आय अर्जित कर रही हैं। ऐसी स्थिति में पति भी पत्नी से भरण-पोषण की मांग कर सकता है, यदि वह आर्थिक रूप से कमजोर है या उसकी आय पत्नी की तुलना में बहुत कम है। इसके अलावा, यदि पति शारीरिक या मानसिक रूप से अक्षम है और उसे वित्तीय सहायता की आवश्यकता है, तो भी वह पत्नी से भरण-पोषण मांग सकता है।

न्यायालय के फैसले में आय का महत्व

न्यायालय भरण-पोषण की राशि निर्धारित करते समय कई कारकों को ध्यान में रखता है। इनमें दोनों पक्षों की आय, संपत्ति, व्यावसायिक योग्यता, जीवन स्तर, विवाह की अवधि और दोनों पक्षों की अन्य जिम्मेदारियां शामिल हैं। यदि पत्नी की आय पति से अधिक है और पति आर्थिक रूप से कमजोर है, तो न्यायालय पत्नी को पति को भरण-पोषण देने का आदेश दे सकता है। भरण-पोषण की राशि निर्धारित करने के लिए कोई निश्चित सूत्र नहीं है, और यह पूरी तरह से न्यायालय के विवेक पर निर्भर करता है।

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एलिमनी के प्रकार

भारतीय कानून में कई प्रकार के भरण-पोषण या एलिमनी हैं। अस्थायी भरण-पोषण वह है जो तलाक की कार्यवाही के दौरान दिया जाता है, जबकि स्थायी भरण-पोषण तलाक के बाद दिया जाता है। इसके अलावा, एकमुश्त भरण-पोषण भी हो सकता है, जहां एक ही बार में एक बड़ी राशि दी जाती है। मासिक भरण-पोषण में, एक निश्चित राशि हर महीने दी जाती है। न्यायालय परिस्थितियों के अनुसार इनमें से किसी भी प्रकार का भरण-पोषण देने का आदेश दे सकता है, चाहे वह पति हो या पत्नी।

समाज में बदलते दृष्टिकोण

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पारंपरिक रूप से, भारतीय समाज में यह माना जाता था कि पति पत्नी का भरण-पोषण करता है। लेकिन समय के साथ, महिलाओं की शिक्षा और आर्थिक स्वतंत्रता बढ़ने के साथ, यह धारणा बदल रही है। अब कई महिलाएं अच्छी नौकरियों में हैं और अच्छी आय अर्जित कर रही हैं। ऐसे में, तलाक के मामले में, न्यायालय महिला की आर्थिक स्थिति को भी ध्यान में रखता है। यदि पत्नी आर्थिक रूप से मजबूत है और पति कमजोर है, तो न्यायालय पत्नी को पति को भरण-पोषण देने का आदेश दे सकता है।

तलाक से पहले जानें अपने अधिकार

तलाक एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें कानूनी, आर्थिक और भावनात्मक पहलू शामिल हैं। इसलिए, तलाक लेने का निर्णय लेने से पहले, दोनों पक्षों को अपने अधिकारों और दायित्वों के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए। एक अच्छे वकील से परामर्श करना महत्वपूर्ण है, जो आपको कानूनी प्रक्रिया के बारे में मार्गदर्शन कर सके। याद रखें, तलाक केवल कानूनी मामला नहीं है, बल्कि यह एक भावनात्मक यात्रा भी है, जिसे सम्मान और समझदारी के साथ निपटाना चाहिए।

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डिस्क्लेमर

यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है और इसे कानूनी सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए। तलाक और भरण-पोषण से संबंधित कानून जटिल हो सकते हैं और प्रत्येक मामले की अपनी विशिष्ट परिस्थितियां होती हैं। इसलिए, किसी भी कानूनी मामले के लिए, योग्य वकील से परामर्श करना अनिवार्य है। लेखक या प्रकाशक इस लेख में दी गई जानकारी के उपयोग से होने वाले किसी भी नुकसान के लिए जिम्मेदार नहीं हैं। कानून और उनकी व्याख्या समय के साथ बदल सकती है, इसलिए नवीनतम जानकारी के लिए आधिकारिक स्रोतों का संदर्भ लें।

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Meera Sharma

Meera Sharma is a talented writer and editor at a top news portal, shining with her concise takes on government schemes, news, tech, and automobiles. Her engaging style and sharp insights make her a beloved voice in journalism.

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