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क्या पति की मंजूरी के बिना पत्नी बेच सकती है प्रोपर्टी, हाईकोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला Property Rights

By Meera Sharma

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Property Rights

Property Rights: संपत्ति से जुड़े कानूनी प्रावधानों के बारे में अधिकांश लोगों को पूरी जानकारी नहीं होती है। विशेष रूप से महिलाओं के संपत्ति अधिकारों के विषय में अक्सर भ्रम की स्थिति बनी रहती है। हाल ही में कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जिसमें स्पष्ट किया गया है कि महिलाएं अपने नाम पर दर्ज संपत्ति को पति की अनुमति के बिना बेच सकती हैं। यह फैसला महिलाओं के संपत्ति अधिकारों को लेकर समाज में मौजूद रूढ़िवादी सोच को चुनौती देता है और महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देता है।

हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

कलकत्ता हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने एक महत्वपूर्ण मामले में यह फैसला दिया है कि महिलाएं अपने नाम पर दर्ज संपत्ति को पति की अनुमति के बिना बेच सकती हैं। जस्टिस हरीश टंडन और जस्टिस प्रसेनजीत बिस्वास की खंडपीठ ने ट्रायल कोर्ट के पहले के आदेश को रद्द करते हुए स्पष्ट रूप से कहा कि पत्नी को पति की संपत्ति के रूप में नहीं देखा जा सकता और न ही उन्हें हर निर्णय के लिए पति की अनुमति लेने की आवश्यकता है। यह फैसला महिलाओं के अधिकारों के संदर्भ में काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

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महिलाओं के संपत्ति अधिकारों पर हाईकोर्ट का दृष्टिकोण

कलकत्ता हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यदि पति और पत्नी दोनों पढ़े-लिखे और समझदार व्यक्ति हैं, तो पत्नी द्वारा अपने नाम पर दर्ज संपत्ति को पति की मंजूरी के बिना बेचने का निर्णय लेना क्रूरता के दायरे में नहीं आता है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि हमें लैंगिक असमानता वाली अपनी मानसिकता में बदलाव लाने की आवश्यकता है। वर्तमान समाज किसी भी रूप में महिलाओं पर पुरुषों के वर्चस्व को स्वीकार नहीं करता है, और यह भावना हमारे संविधान में भी परिलक्षित होती है। हाईकोर्ट का यह फैसला महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता और समानता के अधिकार को मजबूती प्रदान करता है।

समानता का सिद्धांत

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कलकत्ता हाईकोर्ट ने अपने फैसले में समानता के सिद्धांत पर जोर दिया है। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा है कि जिस प्रकार एक पति अपनी पत्नी की सहमति या राय के बिना कोई संपत्ति बेच सकता है, उसी प्रकार एक पत्नी भी अपने नाम पर दर्ज संपत्ति को पति की मंजूरी के बिना बेच सकती है। यह तर्क संविधान के समानता के सिद्धांत पर आधारित है, जो पुरुषों और महिलाओं के बीच किसी भी प्रकार के भेदभाव को अस्वीकार करता है। हाईकोर्ट का यह दृष्टिकोण महिलाओं के स्वतंत्र निर्णय लेने के अधिकार को मान्यता देता है।

ट्रायल कोर्ट के फैसले पर हाईकोर्ट की टिप्पणी

कलकत्ता हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया है, जिसमें कहा गया था कि पत्नी के पास आय न होने के कारण संपत्ति का भुगतान पति ने किया था। हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के इस फैसले को “न मानने लायक और न ही तार्किक” बताया है। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि भले ही पति ने संपत्ति के लिए भुगतान किया हो, लेकिन यदि वह संपत्ति पत्नी के नाम पर दर्ज है, तो यही तथ्य महत्वपूर्ण है। इस फैसले से संपत्ति के स्वामित्व और अधिकारों पर महत्वपूर्ण प्रश्न उठते हैं।

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तलाक से जुड़े मामले में हाईकोर्ट का निर्णय

इस मामले की पृष्ठभूमि में एक तलाक का मामला था, जिसमें ट्रायल कोर्ट ने महिला द्वारा पति की अनुमति के बिना संपत्ति बेचने को क्रूरता मानते हुए पति के पक्ष में तलाक की डिक्री पारित की थी। महिला ने इस फैसले के खिलाफ कलकत्ता हाईकोर्ट में अपील की थी। हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए कहा कि ट्रायल कोर्ट द्वारा इस मामले में जो आदेश और डिक्री पारित की गई थी, वह बरकरार रखने योग्य नहीं है। इस प्रकार, हाईकोर्ट ने तलाक से जुड़ी डिक्री को रद्द कर दिया, जिससे महिला को न्याय मिला।

महिलाओं के संपत्ति अधिकार

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भारत में महिलाओं के संपत्ति अधिकारों में पिछले कुछ दशकों में महत्वपूर्ण बदलाव आए हैं। वर्तमान में, कानून महिलाओं को भी पुरुषों के समान संपत्ति के अधिकार प्रदान करता है। फिर भी, समाज में अभी भी ऐसी धारणाएं मौजूद हैं जो महिलाओं को पुरुषों पर आर्थिक रूप से निर्भर मानती हैं। कलकत्ता हाईकोर्ट का यह फैसला इन रूढ़िवादी धारणाओं को चुनौती देता है और महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देता है। यह फैसला यह स्पष्ट करता है कि महिलाएं अपनी संपत्ति के बारे में स्वतंत्र निर्णय ले सकती हैं।

समाज पर फैसले का प्रभाव

कलकत्ता हाईकोर्ट का यह फैसला समाज पर गहरा प्रभाव डाल सकता है। यह फैसला महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देता है। इससे महिलाओं को अपनी संपत्ति के बारे में स्वतंत्र निर्णय लेने का अधिकार मिलता है, जो उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाता है। यह फैसला समाज में मौजूद लैंगिक असमानता की धारणाओं को चुनौती देता है और एक अधिक समानतापूर्ण समाज की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे महिलाओं को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होने और उनका उपयोग करने का प्रोत्साहन मिलेगा।

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कानूनी जागरूकता की आवश्यकता

इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि संपत्ति से जुड़े कानूनी प्रावधानों के बारे में जागरूकता की कमी है। कई लोग, विशेष रूप से महिलाएं, अपने कानूनी अधिकारों से अनजान हैं। इसलिए, यह आवश्यक है कि संपत्ति से जुड़े कानूनी प्रावधानों के बारे में जागरूकता बढ़ाई जाए। सरकार, गैर-सरकारी संगठनों और मीडिया को इस दिशा में प्रयास करने चाहिए। कानूनी जागरूकता से लोग अपने अधिकारों का बेहतर उपयोग कर सकते हैं और अपने हितों की रक्षा कर सकते हैं।

कलकत्ता हाईकोर्ट का यह फैसला महिलाओं के संपत्ति अधिकारों के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। यह फैसला स्पष्ट करता है कि महिलाएं अपने नाम पर दर्ज संपत्ति के बारे में स्वतंत्र निर्णय ले सकती हैं, और उन्हें इसके लिए पति की अनुमति की आवश्यकता नहीं है। यह फैसला महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता और समानता के अधिकार को मजबूती प्रदान करता है। यह फैसला समाज में मौजूद लैंगिक असमानता की धारणाओं को चुनौती देता है और एक अधिक समानतापूर्ण समाज की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। आशा है कि इस फैसले से महिलाओं को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होने और उनका उपयोग करने का प्रोत्साहन मिलेगा।

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Disclaimer

यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है और इसे कानूनी सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। संपत्ति के मामलों में कई जटिल कानूनी पहलू होते हैं, जो प्रत्येक मामले की विशिष्ट परिस्थितियों पर निर्भर करते हैं। किसी भी संपत्ति से संबंधित निर्णय लेने से पहले, कृपया योग्य कानूनी सलाहकार से परामर्श करें। कलकत्ता हाईकोर्ट का यह फैसला एक विशिष्ट मामले पर आधारित है और इसे सभी मामलों पर लागू नहीं किया जा सकता है।

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Meera Sharma

Meera Sharma is a talented writer and editor at a top news portal, shining with her concise takes on government schemes, news, tech, and automobiles. Her engaging style and sharp insights make her a beloved voice in journalism.

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