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सरकारी कर्मचारियों के ट्रांसफर के मामले में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, हाईकोर्ट का निर्णय पलटा Supreme Court

By Meera Sharma

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Supreme Court

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी कर्मचारियों के स्थानांतरण और वरिष्ठता से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में अपना निर्णय सुनाया है, जिसका सभी सरकारी कर्मचारियों पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। भारत की सर्वोच्च अदालत ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को पलटते हुए स्पष्ट किया है कि यदि कोई कर्मचारी स्वयं अपनी इच्छा से स्थानांतरण का अनुरोध करता है, तो उसे ‘जनहित’ में हुआ स्थानांतरण नहीं माना जाएगा। इसका सीधा अर्थ है कि अपनी इच्छा से स्थानांतरण लेने वाले कर्मचारी अपने पिछले पद की वरिष्ठता का दावा नहीं कर सकते हैं और उन्हें नए स्थान पर सबसे कनिष्ठ माना जाएगा।

न्यायालय की पीठ और उनका निर्णय

यह महत्वपूर्ण फैसला जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने दिया है। न्यायाधीशों ने स्पष्ट किया है कि सरकारी कर्मचारियों के स्थानांतरण को मुख्य रूप से दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है। पहली श्रेणी में वे स्थानांतरण आते हैं जो प्रशासनिक आवश्यकताओं या ‘जनहित’ के लिए किए जाते हैं। दूसरी श्रेणी में वे स्थानांतरण आते हैं जो कर्मचारी की व्यक्तिगत इच्छा या अनुरोध पर किए जाते हैं। न्यायालय ने यह भी कहा कि पहली श्रेणी के स्थानांतरण में कर्मचारी की वरिष्ठता प्रभावित नहीं होती, जबकि दूसरी श्रेणी में कर्मचारी को नए स्थान पर सबसे कनिष्ठ माना जाता है।

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वरिष्ठता और कार्यरत कर्मचारियों के हित का संतुलन

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी रेखांकित किया है कि नए स्थान पर पहले से कार्यरत कर्मचारियों के हितों की रक्षा करना भी आवश्यक है। न्यायालय का मानना है कि यदि किसी कर्मचारी को उसके स्वयं के अनुरोध पर स्थानांतरित किया जाता है और फिर उसे उसकी पुरानी वरिष्ठता दी जाती है, तो इससे नए स्थान पर पहले से कार्यरत कर्मचारियों के अधिकारों का उल्लंघन होगा। न्यायालय ने कहा कि बिना किसी सार्वजनिक हित के, पहले से कार्यरत कर्मचारियों के अधिकारों में परिवर्तन नहीं किया जा सकता है। यह फैसला कर्मचारियों के अधिकारों और प्रशासनिक आवश्यकताओं के बीच एक संतुलन स्थापित करने का प्रयास करता है।

मामले की पृष्ठभूमि

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यह विवाद एक स्टाफ नर्स से जुड़ा है, जिन्होंने 1985 में चिकित्सकीय कारणों से फर्स्ट डिवीजन असिस्टेंट (FDA) के पद पर स्थानांतरण का अनुरोध किया था। मेडिकल बोर्ड ने उनकी बीमारी की पुष्टि भी की थी। स्थानांतरण का अनुरोध करते समय, नर्स ने लिखित रूप में यह स्वीकार किया था कि उन्हें नए पद पर सबसे कनिष्ठ स्थान दिया जाए। कर्नाटक सरकार ने 1989 में उनके स्थानांतरण को मंजूरी दी और उनकी वरिष्ठता 1989 से निर्धारित की गई। हालांकि, 2007 में नर्स ने अपनी वरिष्ठता की गणना को चुनौती देते हुए दावा किया कि उनकी वरिष्ठता 1979 से गिनी जानी चाहिए, जब उन्होंने पहली बार सरकारी सेवा में प्रवेश किया था।

कर्नाटक ट्रिब्यूनल और हाई कोर्ट के फैसले

कर्नाटक प्रशासनिक ट्रिब्यूनल और बाद में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने नर्स के पक्ष में फैसला सुनाया था। दोनों ने ‘स्टेट ऑफ कर्नाटक बनाम के. सीतारामुलु (2010)’ मामले का हवाला दिया, जिसमें यह निर्धारित किया गया था कि चिकित्सकीय कारणों से किए गए स्थानांतरण को ‘जनहित’ में माना जाना चाहिए और ऐसे मामलों में कर्मचारी की पुरानी वरिष्ठता बरकरार रखी जानी चाहिए। ट्रिब्यूनल और उच्च न्यायालय ने यह निर्देश दिया था कि नर्स की वरिष्ठता 19 अप्रैल 1989 से नहीं, बल्कि 5 जनवरी 1979 से गिनी जानी चाहिए, जब उन्होंने स्टाफ नर्स के रूप में अपनी सेवा शुरू की थी।

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सुप्रीम कोर्ट ने क्यों पलटा निचली अदालतों का फैसला

उच्च न्यायालय के इस फैसले से असंतुष्ट होकर, कर्नाटक सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों के फैसले को पलटते हुए कहा कि उन्होंने इस मामले की प्रकृति का गलत आकलन किया है। न्यायमूर्ति नरसिम्हा ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि नर्स ने स्वेच्छा से स्थानांतरण का अनुरोध किया था और नए पद पर सबसे कनिष्ठ रहने के लिए सहमति भी व्यक्त की थी। इसलिए, वह अपनी पिछली नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता का दावा नहीं कर सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ट्रिब्यूनल और उच्च न्यायालय ने गलती की है, क्योंकि उन्होंने स्वेच्छा से लिए गए स्थानांतरण को ‘जनहित’ में हुआ स्थानांतरण मान लिया था।

जनहित में हुए स्थानांतरण और स्वेच्छा से लिए गए स्थानांतरण में अंतर

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सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में ‘जनहित’ में हुए स्थानांतरण और स्वेच्छा से लिए गए स्थानांतरण के बीच स्पष्ट अंतर किया है। ‘जनहित’ में हुए स्थानांतरण वे होते हैं, जो प्रशासनिक आवश्यकताओं, सरकारी नीतियों या अन्य सार्वजनिक हितों के कारण किए जाते हैं। इन मामलों में, कर्मचारी की वरिष्ठता बरकरार रहती है। दूसरी ओर, स्वेच्छा से लिए गए स्थानांतरण वे होते हैं, जिनका अनुरोध कर्मचारी स्वयं अपनी व्यक्तिगत समस्याओं या सुविधाओं के लिए करता है। यह स्पष्टीकरण सरकारी कर्मचारियों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे उन्हें स्थानांतरण के निर्णय लेने से पहले इसके परिणामों के बारे में सोचने का अवसर मिलेगा।

सरकारी कर्मचारियों पर पड़ेगा प्रभाव

इस फैसले का सरकारी कर्मचारियों पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा। अब वे कर्मचारी जो अपनी इच्छा से स्थानांतरण लेते हैं, उन्हें पूरी तरह से जागरूक होना होगा कि इससे उनकी वरिष्ठता प्रभावित हो सकती है। उन्हें नए स्थान पर सबसे कनिष्ठ माना जाएगा, भले ही उन्होंने पहले कितने ही वर्षों तक सेवा की हो। यह फैसला विशेष रूप से उन कर्मचारियों के लिए महत्वपूर्ण है, जो व्यक्तिगत कारणों जैसे परिवार, स्वास्थ्य या अन्य सुविधाओं के लिए स्थानांतरण का अनुरोध करना चाहते हैं। उन्हें अब अपने करियर की प्रगति और वरिष्ठता के बीच संतुलन बनाने का निर्णय लेना होगा।

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चिकित्सकीय कारणों से स्थानांतरण की विशेष परिस्थिति

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है कि क्या चिकित्सकीय कारणों से स्थानांतरण को भी स्वेच्छा से लिया गया स्थानांतरण माना जाएगा। हालांकि, इस मामले में नर्स का स्थानांतरण चिकित्सकीय कारणों से था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनके स्वयं के अनुरोध और वरिष्ठता के संबंध में उनके लिखित बयान को महत्व दिया। यह संभव है कि भविष्य में ऐसे मामलों में, यदि स्थानांतरण प्रशासन द्वारा स्वयं किया जाता है, तो वरिष्ठता बरकरार रह सकती है। लेकिन यदि कर्मचारी स्वयं अनुरोध करता है, तो उसे वरिष्ठता का त्याग करना पड़ सकता है, भले ही अनुरोध चिकित्सकीय कारणों से हो।

फैसले का व्यापक अर्थ

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इस फैसले का एक व्यापक अर्थ यह भी है कि यह प्रशासनिक पारदर्शिता और न्याय को बढ़ावा देता है। यह सुनिश्चित करता है कि जो कर्मचारी अपनी वर्तमान नियुक्ति में रहते हैं और अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं, उनके अधिकारों की रक्षा होगी। साथ ही, यह फैसला प्रशासन को स्थानांतरण नीतियों को स्पष्ट और पारदर्शी बनाने के लिए प्रोत्साहित करता है। इससे कर्मचारियों को अपने करियर से जुड़े निर्णय लेने में मदद मिलेगी और उन्हें स्थानांतरण के परिणामों के बारे में पहले से जानकारी होगी। यह कर्मचारियों और प्रशासन के बीच विवादों को कम करने में भी सहायक होगा।

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सरकारी कर्मचारियों के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है कि वे स्थानांतरण के निर्णय सावधानीपूर्वक लें। यदि कोई कर्मचारी अपनी इच्छा से स्थानांतरण लेता है, तो उसे यह स्वीकार करना होगा कि इससे उसकी वरिष्ठता प्रभावित हो सकती है। दूसरी ओर, यदि प्रशासन द्वारा ‘जनहित’ में स्थानांतरण किया जाता है, तो कर्मचारी अपनी मूल वरिष्ठता बनाए रख सकता है। यह फैसला सरकारी कर्मचारियों को अपने अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में अधिक जागरूक बनाएगा और उन्हें अपने करियर से जुड़े निर्णय लेने में मदद करेगा। अंततः, यह फैसला प्रशासनिक न्याय और पारदर्शिता को मजबूत करने में सहायक होगा।

Disclaimer

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यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है और इसे कानूनी सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। हर मामला अपनी विशिष्ट परिस्थितियों पर निर्भर करता है, और कानूनी निर्णय समय के साथ बदल सकते हैं। यदि आप सरकारी कर्मचारी हैं और स्थानांतरण या वरिष्ठता से संबंधित कोई मुद्दा आपको प्रभावित कर रहा है, तो आपको एक योग्य कानूनी सलाहकार से परामर्श करने की सलाह दी जाती है। लेखक और प्रकाशक इस लेख में दी गई जानकारी के आधार पर किए गए निर्णयों के परिणामों के लिए जिम्मेदार नहीं हैं।

Meera Sharma

Meera Sharma is a talented writer and editor at a top news portal, shining with her concise takes on government schemes, news, tech, and automobiles. Her engaging style and sharp insights make her a beloved voice in journalism.

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